पंक्ति- कहानी चिंतन की

पंक्ति
आज दिन हर-रोज़ की तरह कुछ अलग था| प्रिंसिपल साहिबा बड़े ध्यान से सरकारी कचहरी से आया फरमान  पढ़ रही थी| फरमान में ये आदेश था की फरमान मिलने के दिन से ही पाठशाला की प्रार्थना सभा में हर रोज़ 'भारतीय राष्ट्रीय प्रतिज्ञा' बुलवाई जाए| प्रिंसिपल साहिबा ने सभी शिक्षकों को अपने कार्यालय में बुलाया और फरमान के बारे में बताया|

" मेरा सुझाव है की ये हमें  आज से ही शुरू कर देना चाहिए|" एक अध्यापक ने  बड़ी निम्रता से बोले

प्रिंसिपल साहिबा ने उनको सुना और सबकी ओर देखा तभी एक अध्यापिका ने प्रश्न किया
" ये फरमान लागू करने से पहले,क्या हम सभी बच्चों को इसके अर्थ के बारे में समजा सकते है?"
प्रिंसिपल साहिबा ने सबका सुझाव माँगा लेकिन बहुत काम रहता है और वक़्त कम मिलता है ऐसा कह के प्रतिज्ञा को बिना समझाए लागू करने-का का सुझाव  दिया|
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            प्रार्थना सभा

सभी छात्रोने अपनी जगह ले ली थी| प्रार्थना शुरू हुई| समाचार पठन  हुआ| समाचार पठन के बाद प्रार्थना सभा समाप्त की जाती थी| सभी छात्र को लगा सभा समाप्त हुई तभी प्रार्थना का नेतृत्व कर रही छात्रा ने सभी छात्रों को खड़ा होने की आज्ञा दी और प्रतिज्ञा की मुद्रा खुद ने की और सबको वैसा करने को बोला| सभी बड़े आतुर थे| अब क्या होगा ऐसा एक दूसरे को प्रश्न कर रहे थे|

"अब हम हमारे देश की राष्ट्रीय प्रतिज्ञा बोलेंगे,पहले में बोलूंगी उसके बाद आप सब उसे दोहराएँगे|सभी छात्रों ने ऐसा किया| प्रतिज्ञा ली गयी और प्रार्थना सभा समाप्त की गई|

बाकी छात्रों का तो पता नहीं लेकिन चिंतन गहरी सोच में पड़ गया| चिंतन पांच वी क्लास में पढ़ता था| वह पढ़ने में बहुत तेज़ था| वह अपने से बड़ों का आदर करता था और उनकी कही बात का अक्षरशः पालन करना अपना कर्त्तव्य समझता था| उसका कोई भाई बहन न था| उसे पूरी प्रतिज्ञा में से 'भारत मेरा देश है| हम सब भारतवासी भाई बहन हैं '
अच्छे से याद रह गई थी | उसे आज बहुत ख़ुशी हो रही थी| जो भाई बहन  ना होने का उसे मलाल रहता था वो आज जैसे गुम हो गया था| वह अपने साथ पढ़ने वाले सभी छात्रों को अपने भाई बहन की तरह देखने लगा| ऐसा लग रहा हो जैसे उसकी पूरी दुनिया बदल गयी हो|
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             नया मित्र ‘समय’

चिंतन का घर पाठशाला से कुछ ही दुरी पर था | वह अकेले ही चलके पाठशाला आया जाया करता था| घर के राश्ते में एक चाय की होटल आती थी,उसमे उसकी ही उम्र का एक बच्चा काम करता था| चिंतन उसे हर रोज़ देखता,लेकिन आज उसका उसे देखने का नज़रिया बादल गया| उसे वह अपने भाई की तरह नजर आया| उसने उसको जाकर मिलने ने का सोचा,वह गया और उससे मिला| उस लड़के का नाम समय था| वह बहुत गरीब था और उसका कोई नहीं था| वह वहा काम करता और वही रात को सो जाता| चिंतन और समय दोनों हर रोज़ मिलने लगे| पाठशाला के बाद चिंतन हर रोज़ समय से मिलने जाता और अपने नाश्ते में से बचाया हुआ खाना उसे देता| थोड़ी देर बात करता और फिर घर चला जाता|
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               चिंतन की माँ
एक दिन वहा से चिंतन की माँ का गुज़र हुआ| उसने उसे समय के साथ देखा| वो बड़ी परेशान हुई,सोचने लगी की चिंतन उस लड़के के साथ क्या कर रहा है| वह दौड़ के गयी और चिंतन को अपने साथ आने का इशारा किया| वह ख़ुश होके आया और उसने समय को भी अपनी माँ से मिलाया,लेकिन उन्होंने समय को ज्यादा तवज्जो नहीं दिया और देर  हो रही रही है ऐसा कहकर चिंतन का हाथ पकड़ा और वहा से चल पड़ी|

रास्ते में माँ ने चिंतन से पूछा," वो कौन है? तुम उससे बात क्यों कर रहे थे?

चिंतन मुश्कुराते हुए बोला," माँ,बताया तो सही वो समय है| वह मेरा भाई है|"

माँ बड़े आश्चर्य में पड़ गयी," वह तुम्हारा भाई! वह तुम्हारा भाई कैसे हुआ?"

चिंतन ने फिर अपनी माँ को प्रतिज्ञा की उस पंक्ति सुनाई और बोला," समय भी भारतीय है इसलिए वह मेरा भाई है|"

माँ बड़ी गुस्से हुई और बोली," ऐसा कुछ नहीं होता| ऐसा सिर्फ बोलने को होता है| उसे सिर्फ बोलना चाहिए लेकिन ऐसा करना जरूरी नहीं है|समय कोई तुम्हारा भाई नहीं है| अब से तुम उसको नहीं मिलोगे,और कल से में ही तुम्हे पाठशाला छोड़ने और लेने आउंगी|"

चिंतन कुछ न कह  पाया| बस माँ की और बड़े आश्चर्य से  देखने लगा और सोचने लगा " अगर करना ही नहीं है,सिर्फ बोलना ही है,तो ऐसे बोलने का भी क्या फायदा?चिंतन ने उस दिन से प्रतिज्ञा की वह पंक्ति बोलना ही छोर दिया!
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नाम:- बुरहान
दिनांक:- 17 अप्रेल 2019

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